धर्म संस्कृति संगम द्वारा आयोजित बौद्ध वैदिक महासम्मेलन
वाराणसीः 19 अप्रैल। धर्म संस्कृति संगम द्वारा निवेदिता बालिका इन्टर कालेज महमूरगंज में आयोजित बौद्ध वैदिक महासम्मेलन के उद्घाटन सत्र में शंकराचार्य ज्योतिष द्वारिका पीठ के प्रतिनिधि एवं शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि विश्व मंगल के लिए धर्मो में समन्वय जरूरी है। इसके लिए खुले मन से धर्मो में निकटता भी आवश्यक है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सम्मेलन बौद्ध वैदिक संगम की दृष्टि से उत्तम है। इस सम्मेलन को लेकर लोगों के मन में अनेक प्रकार की जिज्ञासाएं भी है जिसका समाधान इसमें हुए विचार विमर्श के द्वारा होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया में किसी न किसी बहाने आपस में जुड़ना मनुष्य का स्वभाव है, जिसे शास्त्रों में बादरायण वृत्ति के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म की मान्यता है कि परमात्मा एक है भले ही उपासक उसे शिव, विष्णु, बुद्ध इत्यादि रूपों में मानते है, यही धर्मो में एकता का आधार है। वैदिक और बौद्ध धर्म परस्पर मिलने को आतुर है यह शुभ और श्रेष्ठ है। इसी तरह की इच्छा शक्ति से ही धर्म संस्कृति संगम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकेगा। यह कार्य हमें धैर्य के साथ करना चाहिए, यही धर्म का सार है। धर्मो में समन्वय से ही विश्व मंगल का मार्ग मिल सकता है।
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए तिब्बती विश्वविद्यालय के कुलपति पद्मश्री प्रो. गेशे नवांग समतन ने कहा कि बौद्ध और वैदिक धर्मो का मूल मैत्रेयीय अनुकंपा है। वर्तमान समय में असंतोष जिन संस्कृतियों में है उन्हीं से विश्व में अशांति फैल रही है। आज विश्व में शांति के लिए करूणा, मैत्रेयीय तथा संतोष जरूरी है। आतंकवाद का निदान भी इसी से है।
पूज्ये भंते शासन रस्मि ने कहा यह सम्मेलन बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लक्ष्य को पूरा करे। उन्होंने कहा इस समय हमारे देश और दुनिया में उथल-पुथल मची है, इससे बचने के लिए लोभ, द्वेष तथा मोह पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ जनता और शासक वर्ग को अपने मानस स्तर को श्रेष्ठ बनाना होगा।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति प्रो. शिवजी उपाध्याय ने कहा कि गीता में भगवान ने कहा है कि बुद्धि में भेद होने से संघर्ष उत्पन्न होता है। इतिहास में बुद्धि भेद के कारण ही समय-समय पर संघर्ष हुए। उन्होंने कहा वैदिक और बौद्ध साहित्य दुनिया का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है, इस पर विचार होना चाहिए। दोनों में समन्वय से विश्व में शांति आएंगी।
पद्श्री प्रो. रामशंकर त्रिपाठी ने कहा कि बौद्ध और वैदिक धर्म में आधारभुत निकटता है। दोनों धर्म समान है और सबको आगे बढने का मार्ग प्रशस्त करते है। बौद्ध धर्म की मुख्य बात समता है। यही वैदिक धर्म का भी आधार है। दोनों धर्म अहिंसा और करूणा दोनों को समान महत्व देते है, भविष्य में सभी धर्मो में समन्वय आवश्यक है। सन्त सतुआ बाबा के प्रतिनिधि डा. रवि प्रकाश पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत सन्देश में रेखांकित किया कि बौद्ध वैदिक धर्म एक ही नदी की दो धारा है दोनों के मिलने से विश्व में कुरीत और हिंसा खत्म होगी।
उन्होंने तालिबानियों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को रेखांकित किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि दोनों धर्मो के समन्वय से अहिंसा का मार्ग प्रशस्त होगा।
कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए धर्म संस्कृति संगम के संरक्षक श्री इन्द्रेश कुमार जी- राष्टीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य- ने कहा कि काशी और सारनाथ एक दूसरे के पूरक है। वर्तमान समय में अपराध, भष्टाचार अपसंस्कृति, आतंकवाद, उपभोक्तावाद से समाज संकटग्रस्त हो गया है। इससे बचने के लिए काशी और सारनाथ द्वारा प्रयास किया जाना आवश्यक है। उन्होंने सारनाथ को तीर्थ स्थल घोषित करने एवं बौद्ध धर्मावलम्बियों को अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति देने की आवश्यकता पर बल दिया।
समारोह के अध्यक्ष तथा संस्कृत के आचार्य प्रो. रामयत्न शुक्ल ने कहा कि सभी सुखी हो यही धर्म का लक्ष्य है। धर्म में एकता से ही आतंकवाद मिटेगा।
महासम्मेलन का शुभारम्भ स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द, प्रो. गेशे नवांग समतेन, आचार्य राम यत्न शुक्ल, रामरक्षा त्रिपाठी, इन्द्रेश कुमार एवं महापौर कौशलेन्द्र सिंह द्वारा द्वीप प्रज्जवलन द्वारा हुआ।
इस अवसर पर बौद्ध छात्रों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। महापौर कौशलेन्द्र सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया तथा स्वागत भाषण मनीष कपूर ने किया।
अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट श्री बाल कृष्णन नाईक, प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय ने किया। धर्म संस्कृति संगम के अध्यक्ष प्रो. राम रक्षा त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा समारोह का संचालन डा. सुखदेव त्रिपाठी ने किया।
इस महासम्मेलन में दिल्ली, बिहार, लद्दाख, हिमांचल प्रदेश, सिक्किम, अरूणांचल, पंजाब, हरियाणा, के राज्यों से बौद्ध वैदिक विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विहिप के संगठन महामंत्री दिनेश जी, सतुआ बाबा, प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय, सुषमा यादव, शांत प्रकाश, डा. नीरजा माधव, प्रो.ओम प्रकाश सिंह, प्रो. उषा किरण राय, डा. माधुरी तिवारी, डा. भक्तिपुत्र रोहितम्, पी.के.दास, महेन्द्र सिंह ‘किसान’ आदि प्रमुख लोग उपस्थित थे ।
धर्म संस्कृति संगम की स्मारिका का लोकार्पण
बौद्ध-वैदिक महासम्मेलन के उद्घाटन सत्र में धर्म-संस्कृति संगम की स्मारिका का लोकार्पण स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी एवं पद्मश्री प्रो. गेषे नवांग समतन ने किया। आवरण सहित बीस पृष्ठों की इस स्मारिका में लेखों के अतिरिक्त धर्म - संस्कृति संगम - 2008 सारनाथ के मुख्य बिन्दुओं की झलक है। यह स्मारिका पिछले सम्मेलन की स्मृति को स्पष्ट रूप में रेखांकित करती है। बौद्ध धर्म की नवीन प्रवृत्तियों का विवरण इस स्मारिका में है।
विश्व संवाद केंद्र / 19 अप्रैल 2009/
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